महात्मा गाँधी और पं. दीनदयाल उपाध्याय का मानववादी चिन्तन
Abstract
महात्मा गांधी और पं. दीनदयाल उपाध्याय दोनो ही युगपुरूष थे। इनका व्यक्तित्व व कृतित्व बहु आयामी था। ये उच्च कोटि के विचारक, प्रतिभा सम्पन्न लेखक, कुशल पत्रकार, प्रभावी वक्ता, निपुण संगठक, चतुर राजनीतिज्ञ व सफल आन्दोलन कर्ता थे। महात्मा गांधी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व ने जहाँ उन्हें राष्ट्रपिता और बापू के स्नेहमयी पद पर प्रतिस्थापित किया वहीं पं. दीनदयाल उपाध्याय अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बल पर एक युग द्रष्टा एवं राष्ट्र पुरुष के रूप में स्थापित हुए।
जहाँ महात्मा गांधी ने देश वासियों को ऊंच-नीच एवं छुआछूत के भेदभाव और धार्मिक जड़ता से त्रस्त मानवता को मुक्ति दिलाकर उनमें स्वाधीनता की भावना को जागृत किया तथा उन्हें देश की आजादी के लिए करो या मरों के वेदवाक्य के साथ एक झण्डे के नीचे खड़ा किया। तत्पश्चात स्वतन्त्रता आन्दोलन वास्तव में जन आन्दोलन बन सका। वहीं पं. दीनदयाल उपाध्याय ने स्वतन्त्रता के बाद भारत को एक श्रेष्ठ, शक्तिशाली और संन्तुलित राष्ट्र के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया तथा पूँजीवादी विचारधारा और साम्यवादी विचारधारा की प्रतिद्वन्दिता में पिस रही मानवता को भारतीय संस्कृति में रची-वसी एकात्मता के सूत्र के आधार पर एकात्म मानववादी दर्शन का विकल्प उपलब्ध कराकर व्यष्टि से लेकर समष्टि तक तथा और आगे बढते हुए परमेष्ठी तक के एकात्म-भाव को स्थापित किया।
मुख्य शब्द: एकात्म, मानववादी दर्शन, मानवता , दीनदयाल उपाध्याय।