पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद का एक विश्लेषण
Abstract
इतिहास पंडित दीनदयाल उपाध्याय को केवल जनसंघ के प्रमुख शिल्पकार ही नहीय बल्कि एक सर्वथा मौलिक पुस्तक ’एकात्म मानववाद’ के लेखक रूप में याद रखेगा। स्वतंत्रता के बाद भारत में ऐसे नेता नहीं हुए हैं, जो राजनीति के दार्शनिक भी हों। दीनदयाल जी उन कुछ सर्वोत्तमों में से एक थे।
आज स्वतंत्रता-प्राप्ति के 70 वर्ष बाद भी भारत के सामने यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न बना हुआ है, कि सम्पूर्ण जीवन की रचनात्मक दृष्टि से कौन-सी दिशा आत्मसात की जाये, लेकिन इस संबंध में सामान्यतः लोग सोचने के लिए तैयार नहीं हैं, वे तो तात्कालिक मुद्दो पर ही विचार करते हैं। कभी आर्थिक मुद्दों को लेकर उनको सुलझाने का प्रयत्न करते हैं। और कभी राजनीतिक अथवा सामाजिक मुद्दों को सुलझाने के प्रयत्न किये जाते हैं, किन्तु मूल दिशा का पता न होने के कारण ये जितने प्रयत्न होते हैं, न तो उनमें पूरा उत्साह रहता है, न उनमें आनंद का अनुभव होता है और न उनके द्वारा जैसी सफलता मिलनी चाहिये वैसी सफलता मिल पाती है।
मुख्य शब्द: आर्थिक मुद्दों, भारतीय संस्कृति, एकात्म मानववाद, समग्र जीवन दर्शन।